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Chaudhary Charan Singh

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)
बौद्धिक सभा

लोहिया के लेनिन व समाजवाद के प्रणेता मुलायम सिंह

भारतीय राजनीति विशेषकर आपातकाल के उपरान्त की राजनीति में मुलायम सिंह एक ध्रुव के तारे की तरह स्वयं को स्थापित किया और आज समाजवादी पक्ष के केन्द्र बिन्दु हैं। उन्होंने आचार्य नरेन्द्रदेव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण व डा0 लोहिया द्वारा प्रारम्भ की गई परम्परा और परचम को लोकबंधु राजनारायण, मधुलिमये, चैधरी चरण सिंह के बाद आगे बढ़ाया। 1939 में सैफई जैसे छोटे से गाँव में एक साधारण परिवार में जन्में नेताजी उन विभूतियों में से एक हैं जिन्होंने अपना मुकाम एक लम्बे व सत्त संघर्ष के बाद बनाया व पाया है। महज 15 साल की अवस्था में 1954 में डा0 लोहिया के आह्वान पर किसानों की समस्या को लेकर जेल जाने वाले नेताजी में रचनात्मक बेचैनी बाल्यकाल से ही रही है। उनका छोटा भाई व कार्यकर्ता होने के कारण मैं इसका साक्षी हूँ। उनमें रचना व संघर्ष का अद्भुत समन्वय है। पिता श्री सुघर सिंह जी से साहस संघर्ष व जीवटता तथा माता मूर्ति देवी से करुणा व आचरण उन्हें विरासत में मिला। इन्हीं मानवीय गुणों के साथ वे राजनीति में आये और डा0 लोहिया के विचारों के अग्रदूत बने। डा0 लोहिया जी ने चर्चा के दौरान इटावा रेलवे स्टेशन पर कहा था कि ’’आज देश को मुलायम जैसे जुझारू संकल्प के धनी और कर्मठ नेताओं की आवश्यकता है। उन्होंने भी अपने आदर्श के कथन को सच सिद्ध कर दिखाया। नेताजी 1967 में जसवंतनगर से विधानसभा का चुनाव लड़े तथा लाखन सिंह यादव जैसे सूरमा को हराया। 1967 में ही उत्तर प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इसी बीच बकेवर में पुलिस ने एक दलित और उसकी माँ को निर्वस्त्र कर लाॅक-अप में रखा और उत्पीड़न की हद कर दी। लोहिया के अनुयायी इस अन्याय पर कहाँ चुप रहते। सिद्धान्त के लिए सरकार की परवाह नहीं की और घोषणा कर दी कि कमजोरों को सताने की इजाजत किसी को नहीं, न गैरों को न ही अपनों को। नेताजी ने थाने का घेराव किया, गोलियाँ चली, कुछ लोग हताहत भी हुए। सितम्बर 1968 में उन्हें तीन महीने का कारावास हुआ।

नेता जी उत्तर प्रदेश में जहाँ अन्याय होता पीडि़तों के पक्ष में खड़े होने पहुँच जाते। उनकी प्रसिद्धि बड़े-बड़े दिग्गजों की आँखों को खटकने लगी। सबने मिलकर उन्हें 1969 में चुनाव हरवा दिया। नेताजी ने चुनावी हार को चुनौती के रूप में लिया, अपनी सक्रियता और बढ़ा दी। 1973 तक आते-आते वे पूरे प्रदेश को नाप व मथ चुके थे। 1974 में वे विधानसभा का चुनाव 37 हजार वोटों से जीते। आपातकाल के दौरान भी वे झुके नहीं। भट्टा गांव से एक पंचायत के दौरान उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया। इटावा जेल में 19 महीने रहे, इस समय का उपयोग उन्हेांने अध्ययन विशेष कर डा0 लोहिया को पढ़ने और उसकी विवेचना में किया। नेताजी की अभिरुचि शुरू से ही पढ़ने-लिखने में रही। बचपन में जब उनसे कोई बुजुर्ग पूछता तो बताते ’’पढूँगा, खूब पढँूगा’’। गांव में प्राथमिक पाठशाला नहीं थी तो प्रधान महेन्द्र सिंह के यहां जाकर उनसे पढ़ते थे। जब पाठशाला खुली तो मास्टर साहब ने उनकी मेधा व क्षमता को परखते हुए सीधे तीसरी दर्जा में भर्ती कर लिया। वे न जाने कहाँ-कहाँ से किताबें लाते और पढ़कर दो खूँटी के बीच एक पटरा पर रख कर रख देते। एक दिन किताबों के बोझ से खूँटी उखड़ गयी। उनके संकलन में एक से एक दुर्लभ किताबें थीं जो आज भी सुरक्षित रखी हुई हैं। वे ’’चैखम्बाराज’’ व ’’जन’’ खूब पढ़ते थे तथा हम लोगों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। तब इतनी सुविधाएँ नहीं थी, कभी-कभी भीगी बनियान ही पहनकर निकलना पड़ता था, नेताजी कर्मयोगी की तरह रोज कुछ न कुछ करते रहते। 1977 में वे सहकारिता व पशुपालन मंत्री बने। सहकारिता को व्यापक आधार उन्हीं के कार्यकाल में मिला। किसानों को उन्होंने सीधे-सीधे सहकारिता से जोड़कर उनकी व विभाग की भी स्थिति मजबूत की। 1980 में उन्हें लोक दल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 1982 में करहल ब्लाक के महीखेड़ा गांव में उन पर गोलियाँ चली प्राणघातक हमला भी उनका मनोबल कम न कर सका। 1982 में वे विधान परिषद के सदस्य फिर नेता विरोधी दल विधान परिषद बने। 1985 में लोक दल को 85 सीटें मिली, नेताजी 63 हजार से अधिक मतो के अंतर से जीते। उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुना गया। उनके अकाट्य तर्कों और श्रम साध्य प्रयासों का लोहा सभी मानने लगे। 1985 में उन्होंने क्रान्ति-रथ निकाला, इसके प्रथम चरण की समाप्ति पर लखनऊ में एक बड़ी रैली की जिसमें रामकृष्ण हेगड़े, नंबूदरीपाद, हेमवतीनन्दन बहुगुणा, चन्द्रशेखर व राजेश्वर राव जैसे राष्ट्रीय नेता आये। सही मायने में जनमोर्चा व जनता दल की नींव इसी रैली में पड़ी। पूरे देश खास तौर से उत्तर प्रदेश में सार्थक परिवर्तन का वातावरण बनने लगा, राजनीति के जानकार इसका श्रेय मुलायम सिंह यादव को ही देते हैं। 05 दिसम्बर, 1989 को जनता दल के नेता सदन के रूप में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने कई ऐतिहासिक निर्णय लिये। सिविल सेवाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की, इससे गांव और गरीब परिवार के प्रतिभाशाली छात्रों के लिए अवसर के पद खुले। वे हिन्दी के प्रचार हेतु मद्रास तक पहुँचे। गांधी व लोहिया के बाद यह पुनीत कार्य करने वाले वे एक मात्र नेता हैं। इसी बीच देश व प्रदेश में साम्प्रदायिकता की आंधी चली। नेताजी ने सरकार गंवाना कबूल किया किन्तु संवैधानिक जिम्मेदारी से मुँह न मोड़ा और बाबरी मस्जिद की रक्षा की। 04 नवम्बर 1992 को उन्होंने बाबू कपिल देव, जनेश्वर मिश्र सरीखे नेताओं के सहयोग से समाजवादी पार्टी बनाई। उसके बाद नेताजी 04 दिसम्बर, 1993 से 02 जून, 1995 फिर 29 अगस्त 2003 से 12 मई, 2007 तक यू0पी0 के मुख्यमंत्री और इस दौरान 01 जून 1996 से 19 मार्च, 1998 तक देश के रक्षामंत्री भी रहे। रक्षामंत्री के रूप में सीमा पर स्थापित चैकी पर जाकर सिपाहियों का उत्साह बढ़ाया और शहीदों के अन्तिम ंसंस्कार का पुख्ता इंतजाम किया। अब तक शहीद के घर उसकी टोपी ही जाती थी, विधवायें अपने पति का अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाती थीं। उनके इस निर्णय की प्रशंसा विरोधियों ने भी मुक्त हृदय से किया।

नेताजी भले ही बड़े-बड़े पदों पर रहे हों किन्तु उनकी प्रतिष्ठा समाजवादी विचारधारा के बड़े नेता व व्याख्याता की है, जिसके आगे सभी पद बौने प्रतीत होते हैं। उन्होंने गांव व गरीब परिवार के लोगों को राजनीति की मुख्यधारा में लाकर लोकतंत्र के दायरे को विस्तृत किया। उन्होंने डा0 लोहिया के सप्तक्रान्ति, विकेन्द्रीकरण, दाम बांधो, विशेष अवसर व सामिप्य की निर्गुण अवधारणाओं को सगुण रूप देते हुए ठोस कार्यक्रमों में बदला और दृढ़तापूर्वक लागू किया, जिस प्रकार माक्र्स के सिद्धान्तों को व्यवहारिक अमलीजामा पहनाकर लेनिन ने किया था। उनकी साफगोई व सांगठनिक क्षमता तथा मानवीय सरोकारों को देखकर ही चैधरी चरण सिंह ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और एक से एक बड़े दिग्गजों ने अपना नेता माना। कैफी आज़मी व बी0 सत्य नारायण रेड्डी जैसे ज्ञानियों ने उनकी तारीफ खुले मन व मंच से की। वे 21वीं सदी में समाजवादी राजनीति के पुरोधा व प्रणेता हैं। जब तक समाजवादी सरकार केन्द्र में नहीं बनेगी, देश विदेशी पूँजी, तकनीकी व एजेन्सियों के इशारे पर चलता रहेगा। देश को देशज तौर तरीकों से चलाने के लिए जो मनोबल, जीवटता व अनुभव चाहिए वह आज की तारीख में सिर्फ नेताजी के पास है। इसीलिए उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प पूरे देश के समाजवादियों ने लिया है और देश का इतिहास गवाह है कि समाजवादी जो संकल्प लेते हैं, पूरा करते हैं।