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Chaudhary Charan Singh

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)
बौद्धिक सभा

चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन

कुल बिजली का 50 प्रतिशत गाँवों में दिया जाय तथा बिजलीघर शहर व गाँव में बराबर - बराबर बनाकर चालू कराये जायें। 10 हजार से अधिक जनसंख्या वाले गाँवों में वेयर हाऊस बनाए जायें और अन्न भण्डार के आधार कर्ज की व्यवस्था की जाय। केन्द्रीय वित्त मंत्री बनने के बाद उन्होंने बड़े-बड़े उद्योगों पर कर लगाकर कुटीर तथा लघु उद्योगों पर लगने वाले अतिरिक्त करों को घटाकर अर्थव्यवस्था को किसानोन्मुखी बनाया व समाजवादी धरातल की ओर मोड़ा। मंत्रियों के साथ पीएसी की गारद चलती थी, चरण सिंह ने इसे खत्म कराया। चौधरी साहब बापू के भक्त थे लेकिन वे अंधानुकरण के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने गांधी को अंगीकृत किया लेकिन जहाँ उन्हें राष्ट्रपिता की नीतियों में खामी दिखी, खुलकर बोले। उनका 23 अक्टूबर 1977 को सण्डे वीकली में लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक ही था The Two mistakes of Gandhi Ji इसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा है- "Gandhi Ji has committed two mistakes and these two errors ceased all the good work that his great soul did. His first mistake was that he always considered those involved in khilafat movement to be better people the Jinha the only spokerman of Muslims, and we did not give him his due importance, at the right times it is one of the historics inonies, that the Jinha whom Gandhi Ji Spurned on the advice of Nehru was able to wrest Pakistan from us, Gandhi Ji disciples . People maintain, the Jinha was for Pakistan from the very begining, but I dought this. Jinha was pushed in to taking that stand. Bapoo's second mistakes was that he selected Nehru ji to be prime Minister isteead V.B.Patel. If we had than got a strong leader with Indian ways. India would have been a powerful country today what actually happened was that the Englishman deported but left behind Englishman's supporter . चरण सिंह के दोनों तर्क अकाट्य थे, आज लगभग सभी बुद्धिजीवी स्वीकार कर चुके हैं। इस सन्दर्भ में उनकी पुस्तक ष्म्बवदवउपब चवसपबल व िप्दकपं रू । ळंदकीपंद ठसनम च्तपदजष् पठनीय है जो कई तथ्यों और तर्कों के साथ सिद्ध करती है कि महात्मा गांधी द्वारा पंडित नेहरु को प्रधानमंत्री बनाना बाद में गलत साबित हुआ। नेहरू जी ने गांधी के आर्थिक विचारों की उपेक्षा की और पश्चिमी आर्थिक नीतियों को लागू किया जिससे देश में अमीर-गरीब की खाई बढ़ी। पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि के लिए 36 प्रतिशत और उद्योगों के लिए 5 प्रतिशत व्यय का प्रावधान था, दूसरी पंचवर्षीय योजना में तस्वीर उल्टी हो गई। कृषि के लिए 21 फीसदी एवं उद्योगों के लिए 23 प्रतिशत राशि आवंटित हुई। पहली पंचवर्षीय योजना पर वल्लभ भाई पटेल का असर था। 15 दिसम्बर 1950 को सरदार पटेल के देहावसान के बाद कृषि व किसानों की जो उपेक्षा शुरू हुई, वह चौधरी साहब के वित्तमंत्री व प्रधानमंत्री बनने के बाद ही ठहरी। जब इन्दिरा गांधी के बाद राजीव जी को प्रधानमंत्री बनाया गया तो वे भड़क उठे, उन्होंने 1983 में मथुरा के डैम्पियर नगर में आयोजित जनसभा से सवाल उठाया ‘‘बहन इन्दिरा का बेटा हो, चाहे मेरा बेटा वे जब वह भारत में रहे नहीं, विदेश में पले-बढ़े एवं संस्कारित हुए हैं, उनको भारतीय संस्कृति एवं आदर्शों का बोध नहीं हो सकता। वह काली गाय और भैंस में अन्तर नहीं कर सकते, गेहूँ एवं जौ के पेड़ मेें अन्तर नहीं कर सकते तो इस ग्रामीण भारत की सियासत को कैसे चला सकते हैं।’’ चौधरी साहब रिश्तों को निभाते थे और पढ़ने-लिखने वालों की काफी कद्र करते थे। वे विद्यार्थी जीवन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्रीराम शर्मा के यहाँ दो माह तक रहे और उन्ही के यहाँ खाना खाते रहे। यह तब की बात है जब उन्हें दलितों के साथ सहभोज के कारण छात्रावास से निकाल दिया गया था श्रीराम जी के पुत्र उदयन शर्मा रविवार के संपादक और साहित्कार को उन्होंने आगरा से चुनाव लड़ाया,

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