+91 843337337

Chaudhary Charan Singh

www.charansingh.in
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)
बौद्धिक सभा

चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन

लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आशीर्वाद से जनता पार्टी के गठन की स्वीकृति मिल गई। मोरार जी देसाई विलय नहीं चाहते थे, चरण सिंह सबको मिलाकर एक विकल्प देने के लिए संकल्पबद्ध थे। 19 जनवरी 1977 को मोरारजी देसाई के नई दिल्ली स्थित आवास पर गंभीर मंत्रणा हुई जिसमें पीलू मोदी, एन0जी0 गौर, अशोक मेहता, सुरेन्द्र मोहन, नाना जी देशमुख व चौधरी साहब ने भाग लिया। ज्यादातर नेतागण विलय के पक्षधर थे। अन्त में चौधरी साहब देश और दल के हित में स्वयं की दावेदारी को नकारते हुए मोरारजी देसाई को ही अध्यक्ष बनाने पर सहमत हो गए। जेपी ने अन्तिम निर्णय दिया कि मोरारजी अध्यक्ष और चौधरी साहब उपाध्यक्ष होंगे। हिन्दी पट्टी का नेतृत्व पूरी तरह चौधरी साहब करेंगे। 23 जनवरी 1977 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के दिन जनता पार्टी की घोषणा दिल्ली में हुई। नेताजी जसवंतनगर से दूसरी बार विधायक चुने जा चुके थे उनके कार्याें से चौधरी साहब काफी प्रभावित थे। राजनारायण को राज्यसभा भेजने के बाद समाजवादी पक्ष का चौधरी साहब की तरफ और चौधरी साहब का समाजवादियों की तरफ झुकाव बढ़ चुका था। मोरारजी देसाई व निंगलिजप्पा की संगठन कांग्रेस तथा बाबू जगजीवन राम व हेमवती नन्दन बहुगुणा वाली कांग्रेस फाॅर डेमोक्रेसी, के जनता पार्टी में विलय से एक वातावरण बना कि देश से अब कांग्रेस का सफाया निश्चित है। 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए। जनता ने जनता पार्टी व जयप्रकाश नारायण, आचार्य कृपलानी चौधरी चरण सिंह, राजनाराण की टोली में अपना विश्वास व्यक्त करते हुए भारी अन्तराल से जिताया। 298 लोकसभा सीटें अकेले जनता पार्टी जीती, सहयोगी दलों को मिलाकर यह संख्या 345 पर पहुँच गई। कांग्रेस को मात्र 153 जगह जीत हासिल हुई। जेपी, कृपलानी की इच्छा थी बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनें, चौधरी साहब ने मोरारजी पर सहमति व्यक्ति की । अन्ततोगत्वा 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई जी भारत के प्रधानमंत्री बने। चौधरी चरण सिंह ने गृह व वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी ली जो उनके कद, योगदान व योग्यता के अनुरूप थी। कांतिशाह व राजनारायण प्रकरण से मोरारजी व चरण सिंह का मतभेद बढ़ता गया जो चरण सिंह जी के इस्तीफा देने केे बाद भी कम नहीं हुआ। 23 दिसम्बर 1977 को दिल्ली मेंबड़ी किसान रैली हुई जिसमें चरण सिंह के मंत्रीमण्डल के बाहर होने पर भी रोष व्यक्त किया गया। मोरारजी सरकार की स्थिति बिना रीढ़ के शरीर जैसी हो गई। जनसंघ ग्रुप पूरी तरह चरण सिंह के खिलाफ था क्यांेकि चरण सिंह के रहते उसकी साम्प्रदायिक सोच को अंकुश में रहना पड़ता था। इधर उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव जी के बाद बाबू बनारसी दास जी चौधरी साहब व हेमवती नन्दन बहुगुणा जी के आशीर्वाद से 28 फरवरी 1979 में मुख्यमंत्री बने। नेताजी (जो रामनरेश यादव की मंत्रालय में सहकारिता मंत्री थे) का कद बढ़ाते हुए सहकारिता के साथ-साथ पशुपालन व ग्रामीण उद्योग विकास मंत्रालय का भी मंत्री बना दिया गया। उधर दिल्ली में 28 जुलाई को चौधरी साहब प्रधानमंत्री बने। चौधरी साहब उत्तर प्रदेश में नेताजी के कार्यों से काफी प्रसन्न रहते थे, दोनों की सोच एक जैसी होना भी इसका कारण हो सकता है। 14 जनवरी को दिल्ली में चौधरी साहब की सरकार गिरी, दोबारा इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। चरण सिंह की अगुवाई वाली जनता पार्टी (सेकुलर) को 41 सीटें मिली। नेताजी, जनेश्वर जी जैसे समाजवादी चरण सिंह के साथ रहे। चौधरी साहब 1980 और 1984 के लोकसभा के चुनावों में भी जीते, वे अपराजेय रहे। इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या सेे उपजी सहानुभूति की लहर में भी वे जीते। उनके सहयोगी नेताजी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हार गए। बड़े-बड़े सियासी सूरमाओं के मध्य चौधरी साहब ने नेताजी को ही लोकदल अध्यक्ष बनाने पर जोर दिया, उन्हें पता था कि किसमें प्रदेश और देश को नेतृत्व देने की क्षमता है। चौधरी साहब का विश्वास और स्नेह पाकर नेताजी अगले चुनाव की तैयारी में जुट गए। नेताजी ने राज्य के पिछड़ेपन, भ्रष्टाचार, पुलिसिया उत्पीड़न और अन्याय को मुद्दा बनाया।

Page 7 of 14