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Chaudhary Charan Singh

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)
बौद्धिक सभा

चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन

याद रखिए आपका झगड़ा जब भी होगा, उस खेत वाले से ही होगा, जिसकी मेड़ आपके खेत से मिलती है। इस तथ्य की छाया में ही अब आप यों समझिये कि पहले चीन और भारत के बीच में तिब्बत एक स्वतंत्र देश था, इस कारण चीन और भारत के बीच झगड़े नहीं होते थे। अब तिब्बत पर चीन की मान्यता स्वीकार कर लेने से चीनी सीमा भारत से लग गई और पारस्परिक झगड़ों ने उग्र रूप धारण कर लिया। खैर कुछ भी हो यह निश्चित है कि इन झगड़ों में आखिरी जीत हमारी ही होगी और हमेंयह आत्म-विश्वास रख कर ही अपना काम करते रहना चाहिए। ‘‘ लोहिया ने चीन के आक्रमण की चेतावनी 60 के दशक के प्रारम्भ में ही दे दी थी और पंडित नेहरु से सावधान तथा सजग रहने को कहा । चीन और तिब्बत के परिप्रेक्ष्य में जो राय लोहिया और चरण सिंह की रही, वही नेताजी की है। 6 अगस्त 2013 को लोकसभा में चर्चा के दौरान नेताजी ने तिब्बत पर चीन के कब्जे की पुरजोर निन्दा करते हुए चीन को भारत का शत्रु नम्बर एक तक कह दिया। उपनिवेशवाद तथा चीन के विरुद्ध इतने धारदार शब्दों का प्रयोग सिर्फ लोहिया व चरण सिंह की विरासत का पहरेदार ही कर सकता है। चौधरी साहब ने जातिवाद को समाप्त करने के लिए लोहिया की तरह अन्तरजातीय विवाह की सिफारिश की ताकि सामाजिक जीवन में जातिवाद की जड़ता टूटे। लोहिया भी रोटी-बेटी के सम्बन्ध के हिमायती थे। नेताजी ने भी इसी सोच को आगे बढ़ाया और निजी जीवन में भी इस विचार को अपनाया। अपने दोनों पुत्रों का विवाह दूसरी जाति में किया। चौधरी चरण सिंह के तीन सपने थे जिन्हें पूरा करने की वे कगार पर थे, पर आकस्मिक निधन से पूरा न कर सके। वे राष्ट्रपति प्रणाली पर पुस्तक लिखना चाहते थे, जिसके लगभग 70 पृष्ठ लिख भी चुके थे। दूसरा वे शहरी और महानगरी अभिजात्य वर्ग से जुड़े राजनीतिज्ञों के बीच किसान को पूरी गरिमा के साथ स्थापित करना चाहते थे, वे चाहते थे कि दिल्ली की गद्दी पर गाँव और किसान का बेटा काबिज हो। तीसरे वे इस कलंक को धोना चाहते थे, जो उन्हें ऐसे प्रधानमंत्री के रुप में याद दिलाता है जो संसद का सामना नहीं कर सका। चौधरी साहब जन्मना जाति-पांत के खिलाफ थे। वे सदियों से पद्दलित व वंचित वर्ग की आत्मा को झकझोर कर जगाना चाहते थे और बहुत हद तक जगाने में सफल भी रहे। चौधरी साहब जनसहयोग से राजनीतिक कार्यक्रमों को करवाने में यकीन रखते थे, वे बड़े पूँजीपतियों से धन लेने के सख्त खिलाफ थे, न कभी लिया, यही कारण है कि बड़े से बड़े पूँजीपति के खिलाफ कार्यवाही करने से वे कभी हिचके नहीं। वे बारहों महीना गर्म पानी से नहाते थे, होली को अपवादस्वरूप छोड़ दिया जाय तो कभी साबुन नहीं लगाते थे। उनका पहनावा बेहद सादगी भरा होता था। हल्का काला जूता व काली बेल्ट वाली हल्की घड़ी उन्हें पसंद थी। भोजन में एक दाल मिस्सी या मक्के की रोटी, साग वे हमेशा खाते थे। दूध की मीठी दलिया भी उन्हें पसंद थी। गुड़ के साथ दूध लेते थे, रात्रि 10 बजे के बाद भोजन नहीं करते थे। 1902 के बाद पुलिस सुधार आयोग का गठन तभी हुआ जब चौधरी साहब गृहमंत्री थे। उन्हें महाभारत के प्रसंगों, लावनी रागनी व कबीर के दोहे से बेहद लगाव था। वे हमेशा अपने उद्बोधनों और दैनिक चर्चाओं में उन्हें उद्धरित भी करते रहते थे। वे बुजुर्गों की प्रतिष्ठा का काफी ख्याल रखते थे। यह एक घटना से स्पष्ट हो जाएगी। अक्टूबर 1979 की घटना है चौधरी साहब प्रधानमंत्री थे, बाहर लान में एक बुजुर्ग जाखरिया ताऊ आए और कुछ देर इंतजार करने के बाद चले गए। जब चौधरी स्नान-ध्यान कर लाॅन में आए तो सुरक्षाकर्मियों ने बताया कि जाखरिया नाम के बुजुर्ग आए थे। चौधरी साहब ने तुरन्त गाड़ी निकलवाई और उस दिशा में चल पड़े, जिधर ताऊ गए थे, थोड़ी दूर जाने पर ताऊ मिल गए उनसे हाल-चाल लेने के बाद ही बाकी कामों में लगे। चौधरी साहब को 13 मार्च 1986 को इलाज के लिए अमेरिका के मैरीलैण्ड स्टेट के वाल्टीमोर शहर में स्थित जाॅन हाॅपकिन्स अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया । वे जरा सी राहत होने पर 42 दिन के पश्चात् 22 अप्रैल 1986 को वापस दिल्ली आ गए क्योंकि उन्हें भारत की माटी से दूर अच्छा नहीं लग रहा था।

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