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Chaudhary Charan Singh

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)
बौद्धिक सभा

चौधरी चरण सिंह प्रेरक-जीवन दर्शन

इसी बीच लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी 08 नवम्बर 1942 को हजारी जेल की 17 फुट ऊँची दीवार लाँघकर निकल गए। भूमिगत आन्दोलन जमकर चला, ब्रिटानिया हुकूमत को अंदाजा नहीें था कि द्वितीय पंक्ति के नेताओं का इतना असर होगा। चौधरी चरण सिंह ने लोहिया व जयप्रकाश की तरह भूमिगत होना पसंद किया और किसानों को गोलबंद करते रहे। पर्चे आदि छपवाकर वितरित करते रहे, स्वतंत्रता तथा सतत सत्याग्रह का वातावरण बनाते रहे। लोहिया- जयप्रकाश की तरह ब्रिटानिया हुकूमत ने फरार और बागी घोषित करते हुए इनके ऊपर भी ढ़ाई हजार रुपये का इनाम रख दिया। घर की कुर्की करवाई व उन्हें देखते ही गोली मारने तक का आदेश दिया गया। पुलिस ने 24 अगस्त को एक जगह परचे बाँटते हुए इन्हें गिरफ्तार किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के पश्चात् सभी शीर्ष नेताओं को छोड़ने के बाद भी इन्हें नहीं रिहा किया। बाद में काफी जन-दबाव पड़ने पर 1944 में छोड़ा और इन्हें छोड़ते ही भाई श्याम सिंह तथा भान्जे गोविन्द सिंह को पुलिस क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पकड़ ले गई। गोविन्द को कुछ महीने और श्याम को पाँच साल हिरासत में रखा, यह सब चौधरी साहब के इरादों के पर कुतरने के लिए की जा रही कवायदे थीं, जिनमें ब्रिटानिया हुकूमत नाकाम रही। 1943 में लार्ड लिथलिथगो के बाद लार्ड वावेल भारत के गवर्नर जनरल बन कर आए। वाबेल प्लान लागू किया। 1946 में प्रान्तीय धारा सभा में चौधरी पुनः निर्वाचित हुए। पंडित गोविन्द वल्लभ पंत के नेतृत्व में गठित संयुक्त प्रान्त (यू.पी.) की सरकार में चौधरी साहब लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती सुचेता कृपलानी, चन्द्रभानु गुप्ता के साथ संसदीय सचिव बनाए गए। 1948 से 1951 तक राज्य विधान मण्डलीय दल के सचिव रहे। 1951 में वे प्रथम बार उत्तर प्रदेश के सूचना व न्यायमंत्री बनाये गये। गणराज्य के प्रथम चुनाव के उपरान्त पंत जी केन्द्र चले गए, उत्तर प्रदेश की लगाम डा. सम्पूर्णानन्द के हाथों में आई। सम्पूर्णानन्द जी का झुकाव समाजवाद की ओर जगजाहिर है। उन्होंने समाजवाद पर एक पुस्तक भी लिखी है और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। गाँवों और खेती में जानकारी व जुड़ाव को देखते हुए कृषि मंत्री एवं राजस्व मंत्री का दायित्व आचार्य सम्पूर्णानन्द जी ने चौधरी साहब को दिया। पंतजी ने 1950 के अन्त में चौधरी साहब को जमींदारी उन्मूलन विधेयक बनाने की जिम्मेदारी दी थी जो 1 जुलाई 1952 को लागू हुआ। एक झटके में किसान वर्ग, खेतिहर मजदूरों और भूमिहीन ग्रामीणों के होठों पर मुस्कान आ गई। उन्होंने राजस्व मंत्री के रूप में पटवारी-राज खत्म किया। लेखपालों की नियुक्ति में लोहिया के विशेष अवसर के सिद्धान्त को लागू करते हुए 18 फीसदी दलितों की नियुक्ति का प्रावधान बनाया किन्तु इतने दलित अभ्यर्थी मिले नहीं। आचार्य सम्पूर्णानन्द से उनका किसी विषय पर मतभेद हो गया। कृषि की जगह उन्हें परिवहन फिर अप्रैल 1958 में परिवहन की जगह वित्त और नवम्बर में सिंचाई और बिजली मंत्रालय सौंपा गया। इसी आपाधापी के मध्य अप्रैल 1959 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जून 1959 में नागपुर अधिवेशन में उन्होंने नेहरु के सामूहिक खेती के प्रस्ताव का खुला व तार्किक विरोध किया। यद्यपि प्रस्ताव पास हो गया, केन्द्र व राज्य हर जगह नेहरु जी की सरकार थी लेकिन वह आज तक लागू नहीं हुआ क्योंकि तार्किक दृष्टिकोण से चौधरी साहब की राय वास्तविकता के करीब थी। चरण सिंह जी का इस्तीफा मंजूर हो गया। 7 दिसम्बर 1960 को आचार्य सम्पूर्णानन्द जी की जगह चन्द्रभानु गुप्त के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही दृढ़प्रतिज्ञ चरण सिंह मंत्रीमंडल में वापस लौटे। इस बार उन्हें कृषि और गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। चौधरी साहब ने पुलिस की निरंकुशता पर अंकुश लगाते हुए दस्यु-सरदारों के आतंक को खत्म किया। उन दिनों भिण्ड जिले से सटे हुए इलाकों में डाकुओं की समानान्तर सरकार चलती थी, दस महीने में ही उनसे गृहमंत्रालय ले लिया गया, यह चौधरी साहब को नागवार लगा। 19 जुलाई 1963 को उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।

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